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पहले प्रयास में IPS फिर IAS का सपना पूरा किया गरिमा अग्रवाल ने । 2018

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दोस्तो आज हम बात करने जा रहे है गरिमा के बारे में जिसने अपने  पहले ही प्रयास में यूपीएससी परीक्षा पास कर बनीं IPS फिर ट्रेनिंग के साथ ही पढ़ाई जारी रखते हुए टॉप किया और IAS बन गयीं ।

 यूपीएससी एक ऐसी कठिन परीक्षा मानी जाती है जिसमें लोग एक बार सफलता को तरसते हैं. वहीं कुछ कैंडिडेट्स ऐसे होते हैं जिन्हें किस्मत और उनकी कड़ी मेहनत बार-बार इस मुकाम तक पहुंचा देती है. आज हम बात करेंगे मध्य प्रदेश की एक छोटी सी जगह खरगोन की गरिमा अग्रवाल की. गरिमा का बैकग्राउंड देखो तो सामने आएगा कि उन्होंने अपनी स्टूडेंट लाइफ में बहुत कुछ हासिल किया और वे हमेशा से एक तेज स्टूडेंट रहीं. लेकिन श्रेष्ठ तक पहुंचने का यह सफर इतना आसान नहीं होता न ही इतनी आसानी से यह सफलता मिलती है. हर किसी के जीवन में अपने-अपने संघर्ष होते हैं. गरिमा के भी थे लेकिन सब संघर्षों से पार पाकर उन्होंने यह सफलता हासिल की.


हिंदी मीडियम से पढ़ी हैं गरिमा


गरिमा उन कैंडिडेट्स के लिए भी बड़ी प्रेरणा हैं जिन्हें लगता है कि हिंदी मीडियम से की गयी स्टडी उनके करियर में आगे अवरोध बन सकती है. गरिमा की पूरी स्कूलिंग उनके टाउन में स्टेट बोर्ड से हुयी पर गरिमा अपने जीवन में सफलता दर सफलता हासिल करती गयीं. उनके दसवीं में 92 परसेंट और बारहवीं में 89 प्रतिशत मार्क्स आये. यही नहीं अपने एक्सीलेंट बोर्ड रिजल्ट की वजह से उन्हें रोटरी इंटरनेशनल यूथ एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत एक साल की हायर सेकेंडरी एजुकेशन मिनेसोटा, अमेरिका में पूरी करने को मिली. गरिमा की मां किरण अग्रवाल होममेकर हैं और पिता कल्याण अग्रवाल बिजनेस मैन और समाज सेवी हैं. गरिमा की बड़ी बहन प्रीती अग्रवाल भी साल 2013 में यूपीएससी परीक्षा पास करके इंडियन पोस्टल सर्विस में कार्यरत हैं. उनके पति शेखर गिरिडीह भी आईआरएस ऑफिसर हैं. एक ऐसी फैमिली से संबंध रखना अपने आप में गर्व की बात है पर इससे आपका संघर्ष कम नहीं हो जाता. एक इंटरव्यू में गरिमा कहती हैं, कि आपके परिवार के लोग इसी सेवा में होते हैं इस बात का फायदा मिलता है पर पढ़ना आपको ही पड़ता है, मेहनत आप ही करते हैं और हर तरह का संघर्ष आपका ही होता है. इससे नहीं बचा जा सकता और अपना सौ प्रतिशत तो देना ही होता है.


पहले ही प्रयास में बनीं आईपीएस


स्कूल के बाद गरिमा ने JEE दिया और सेलेक्ट हो गयीं. इसके बाद उन्होंने आईआईटी हैदराबाद से ग्रेजुएशन किया और जर्मनी से इंटर्नशिप. यहीं उन्हें नौकरी का ऑफर भी मिला पर हमेशा से समाज सेवा करने की चाहत रखने वाली गरिमा ने इस नौकरी को न कह दिया. गरिमा ने करीब डेढ़ साल परीक्षा की तैयारी करके साल 2017 में पहली बार यूपीएससी परीक्षा दी और पहली ही बार में सेलेक्ट हो गयीं. गरिमा की 241वीं रैंक थी और उन्हें आईपीएस सर्विस मिली. गरिमा अपनी सफलता से संतुष्ट थीं पर उन्हें आईएएस ज्यादा लुभावना क्षेत्र लगता था. इधर गरिमा ने आईपीएस की ट्रेनिंग ज्वॉइन कर ली और चूंकि वे पहले ही यूपीएससी के लिए तैयारी कर चुकी थीं इसलिए उन्होंने साथ ही में एक बार फिर से तैयारी जारी रखते हुए दोबारा परीक्षा देने का मन बनाया. गरिमा की मेहनत और समर्पण की दाद देनी होगी कि ट्रेनिंग के साथ भी उन्होंने अगले ही साल यानी साल 2018 में न केवल यूपीएससी परीक्षा पास की बल्कि 40वीं रैंक लाकर टॉप भी किया. इसी के साथ उनका बचपन का सपना पूरा हो गया.


सोशल मीडिया से लिया सन्यास


गरिमा की यह सफलता तो सभी को दिखती है पर इसके पीछे का संघर्ष और दिन-रात की मेहनत कम ही लोग जानते हैं. हिंदी मीडियम की गरिमा के लिए इंग्लिश में परीक्षा लिखना और न्यूज़ पेपर पढ़ना आसान नहीं था. शुरू में उन्हें केवल पेपर पढ़ने में ही तीन घंटे लग जाते थे. हिंदी मीडियम के बावजूद उन्होंने इंग्लिश में परीक्षा देना चुना क्योंकि हिंदी में स्टडी मैटीरियल जैसा वे चाह रही थीं नहीं मिल रहा था. इंजीनियरिंग में उन्हें भाषा की बहुत समस्या नहीं आयी क्योंकि अधिकतर कैलकुलेशंस ही रहते थे या कोडिंग. यूपीएससी मेन्स में इफेक्टिव आसंर लिखना सबसे बड़ा चैलेंज था, जिसे पार पाने के लिए उन्होंने खूब आंसर राइटिंग प्रैक्टिस करी. गरिमा कहती हैं, एक या डेढ़ साल की डेडिकेटेड तैयारी आपको सफलता दिला सकती है, बस इस एक या दो साल में कुछ और न करें केवल और केवल यूपीएससी पास करने पर ध्यान केंद्रित करें. न किसी और सरकारी परीक्षा की तैयारी करें न ही कोई और पेपर दें.

गरिमा कहती हैं तैयारी के समय डिस्ट्रैक्शंस से बचने के लिए उन्होंने दो साल तक सोशल मीडिया के सभी एकाउंट डिलीट कर दिए थे. इस सफर में गरिमा अपने माता-पिता का योगदान भी कम नहीं आंकती जिन्होंने परिवार और समाज की बातें न सुनते हुए केवल अपने बच्चों पर विश्वास दिखाया और उनके बच्चों ने भी उनका मान रखा.




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NCERT Book List For UPSC CSE

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UPSC CSE की परीक्षा में अपनी बेसिक को मजबूत करने के लिए NCERT किताबो को पढ़ना जरूरी माना जाता है।
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सृष्टि जयंत देशमुख (Srushti Jayant Deshmukh) पहले ही प्रयास में बनीं IAS ऑफिसर AIR 5 2018

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2018 की UPSC परीक्षा में सृष्टि जयंत देशमुख (Srushti jayant Deshmukh) काफी चर्चा में रहीं। हों भी क्यों न। सबसे प्रतिष्ठित सिविल सेवा परीक्षा में सृष्टि महिला अभ्यर्थियों में पहले स्थान पर रही थीं। वहीं, उनकी ऑल इंडिया रैंक पांचवी रही थी। परीक्षा का परिणाम आते ही उनके परिवार में जश्न सा माहौल बन गया। लेकिन एक बात जो उन्हें खास बनाती है, वह है उनकी तैयारी का तरीका।
मध्यप्रदेश की रहने वाली सृष्टि ने अपनी सफलता पर कहा कि संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा काफी लंबी होती है और इसके लिए आपको कम से कम एक-डेढ़ साल तैयारी को देने होते हैं। मेरे परिवार, अभिभावक, दोस्तों और शिक्षकों ने मुझे खूब सपोर्ट किया। इसलिए इसका श्रेय उन्हें भी जाता है।
पहले प्रयास में सफलता पाने के सवाल पर सृष्टि ने कहा कि मैंने यह सोच लिया था कि मेरा पहला प्रयास ही मेरा अंतिम प्रयास होगा। मैंने निश्चय कर लिया था कि इस परीक्षा को पहले ही प्रयास में पास करना है। आखिर कैसे की परीक्षा की तैयारी, जिससे पहले प्रयास में ही पाई सफलता। बता रही हैं सृष्टि .....



सृष्टि ने एक इंटरव्यू में बताया कि किसी भी अभ्यर्थी को अपनी शुरुआत पुराने छह से सात साल के पेपरों से करनी चाहिए। हर रात उन सवालों को आधे घंटे देखें, जिससे तैयारी करते समय आपको आइडिया हो जाए कि ऐसे भी प्रश्न परीक्षा में आ सकते हैं।
सृष्टि ने बताया कि इंटीग्रेटेड प्रिपरेशन ज्यादा जरूरी है। प्रीलिम्स की तैयारी करें तो ऑब्जेक्टिव, मेन्स के लिए जरूरी टॉपिक्स और इंटरव्यू के लिए करंट अफेयर्स पढ़ते रहें। 
अपने वैकल्पिक विषय को अपनी जरूरत के हिसाब से नहीं, बल्कि अपनी पसंद के हिसाब से चुनें। सृष्टि बताती हैं कि उन्हें केमिकल इंजीनियरिंग पसंद थी। लेकिन विकल्प न होने के कारण उन्होंने समाजशास्त्र लिया। हालांकि ये भी उनके पसंद का ही विषय था।
अखबार पढ़ना अपनी रोज की दिनचर्या में जोड़ें। उन्होंने कहा कि केवल अखबार में खबरें ही न पढ़ें। बल्कि एक नजर संपादकीय यानी एडिटोरियल पेज पर भी डालें। 
रोज जो भी आप करंट अफेयर्स पढ़ते हैं उन्हें नोट्स के रूप में भी तैयार कर लें। 
राज्य सभा टीवी देखना भी अपनी तैयारी में रखें। इसके अलावा वहां से रेज एक टॉपिक को नोट करें और उसके बारे में पढ़ें। 
सबसे आखिरी पड़ाव होता है इंटरव्यू। जिसके लिए आपका डिटेल एप्लीकेशन फॉर्म देखा जाता है। सृष्टि ने बताया कि उन्हें गाने सुनना पसंद है पर उन्हें म्यूजिक के बारे में नहीं पता था, इसलिए उन्होंने इसके बारे में हॉबी में नहीं लिखा।




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रवि कुमार सिहाग UPSC 2018 AIR 337 Hindi Medium

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संघ लोक सेवा आयोग (UPSC- Union Publivc Service Commisiion) परीक्षा में सफल होना आसान नहीं है। इसमें प्रीलिम्स, मुख्य और साक्षात्कार इन तीनों पड़ावों को पार जरूरी होता है। प्रीलिम्स और मुख्य परीक्षा में सफल होने के बावजूद उम्मीदवार साक्षात्कार में इंटरव्यूवर के सामने घबरा जाते हैं और अकसर अपना मौका गवा देते हैं।
इटरव्यू में अक्सर उम्मीदवारों से ऐसे सवाल पूछ लिए जाते हैं जिनका जवाब देना आसान नहीं होता। जिससे उनकी मानसिक और विश्लेषणात्मक क्षमता, फैसले लेने की क्षमता का आंकलन किया जाता है। ऐसे में जो साहस और अपनी बुद्धि से काम लेता है वही सफल हो पाता है।
लेकिन कई बार पैनल द्वारा उम्मीदवारों को अच्छी सलाह भी दे दी जाती है। यहां हम बात कर रहे हैं एक ऐसे ही शख्स की जिन्हें इंटरव्यू के दौरान साक्षात्कारकर्ताओं ने अच्छी सलाह भी दी। ये ऐसी सलाह है जो अन्य उम्मीदवारों के लिए काम की साबित होगी। पढ़ते हैं आगे...

साल 2015 में अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी करने वाले रवि एक साल घर पर ही रहे। हालांकि इस एक साल में उन्हें कई जिम्मेदारियां निभानी थीं। इस दौरान रवि ने बहन की शादी की और फिर अपनी यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी।
2016 से 2018 तक रवि ने यूपीएससी की तैयारी की, फिर 2018 में ही सिविल सेवा की परीक्षा दी और पहली ही बार में 337 रैंक के साथ उन्होंने इसे पास कर लिया। 
रवि से साक्षात्कार में पूछा गया कि अगर आपका चयन सिविल सेवा के लिए नहीं होता है तो आप क्या करेंगे? इस पर रवि का जवाब था कि वह कृषि के क्षेत्र में कुछ करना चाहते हैं। मालूम हो कि उनके पिता किसान हैं।
आईएएस रवि से साक्षात्कार में सरदार पटेल पर भी सवाल पूछे गए। जिसमें से एक सवाल था कि सरदार को बिस्मार्क ऑफ इंडिया क्यों कहते हैं। उनकी मूर्ति गुजरात में कहां है और क्या उस मूर्ति के पास कोई बांध है?




रवि से 16वीं लोकसभा की प्रमुख उपलब्धियां और प्रमुख निराशाजनक बातें भी पूछी गईं।
रवि को क्षेत्रीय भाषा में बात करना और नई भाषाओं को सीखना बहुत पसंद है। ऐसे में उनसे इसी पर एक दिलचस्प सवाल पूछा गया कि अगर उन्हें किसी ऐसी लड़की से प्यार हो जाए जिसकी भाषा और वेशभूषा रवि से अलग हो तो वह प्यार और जिम्मेदारी में से क्या चुनेंगे? तब रवि ने जवाब दिया कि वह सबसे पहले बातचीत का विकल्प चुनेंगे।



साक्षात्कार में रवि के बाल ठीक तरीके से नहीं बने थे। दोनों कानों की तरफ उनके बाल थोड़े उलझे हुए थे।
अधिकारी ने कहा कि आपके बाल मोर पंख की तरह न निकलें। आप जेल लगा लीजिए जिससे यह जमे रहें। 
इसके अलावा उन्होंने सलाह दी कि आप एक नाई की सहायता लें। 
उन्होंने अपनी बातों पर सफाई पेश करते हुए कहा कि मैंने ऐसा इसलिए कहां क्योंकि आपके कमरे में आते ही ध्यान आपके बालों की तरफ जा रहा है। आप तंदुरुस्त इंसान हैं।
मॉक टेस्ट के दौरान अधिकारियों ने कहा कि नर्वस होने की जरूरत नहीं है और फाइनल इंटरव्यू में घबराने की भी जरूरत नहीं है। 

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अक्षत जैन ने UPSC की पहली कोशिश में सिर्फ 2 नंबर से पिछड़े फिर यूं तैयारी करके हासिल किया दूसरा रैंक

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 सिविल सर्विसेज (मुख्य) परीक्षा, 2018 (Union Public Service Commission) के नतीजे आ गए हैं, जिसमें पहला स्थान कनिष्क कटारिया को मिला है जबकि अक्षत जैन दूसरे नंबर पर हैं. आईआरएस की ट्रेनिंग ले रहे जुनैद अहमद ने देश भर में तीसरा रैंक हासिल किया है. वहीं पांचवे स्थान पर रहीं सृष्टि जयंत देशमुख देशभर की महिलाओं में पहले नंबर पर हैं. सफल उम्मीदवारों की जारी हुई लिस्ट के मुताबिक कुल 759 छात्र सफल घोषित किए गए हैं, जिसमें सामान्य वर्ग से 361 छात्र, ओबीसी वर्ग से 209, एससी वर्ग से 128 और एसटी वर्ग से 61 छात्र शामिल हैं. अक्षत जैन के बारे में बात करें तो वह यूपीएससी (UPSC) के पहले प्रयास में सिर्फ 2 नंबर से पिछड़ गए थे.




13 साल की बच्ची की नाना-नानी जबरदस्ती करवा रहे थे शादी, महिला हेल्पलाइन पर फोन करके की शिकायत और फिर...




दूसरे स्थान पर आए अक्षत जैन का कहना है कि उन्होंने खुद को रोबोट बना कर पढ़ाई नहीं की, तैयारी के दौरान वो दोस्तों से मिलते या बातचीत करते रहे. अक्षत ने पहले IIT गुवाहाटी से डिजाइनिंग में ग्रैजुएशन की डिग्री ली और उसके बाद से ही सिविल सर्विसेज की तैयारी में जुट गए. पहले प्रयास में महज 2 नंबर से मिली नाकामी को भूल पूरी लगन और ईमानदारी से पढ़ाई में लगे रहे और इसबार दूसरा स्थान हासिल किया. 



अक्षत जैन ने एक इंटरव्यू में कहा कि सिविल सर्विसेज की परीक्षा आपसे दृढ़ निश्चय और कठोर परिश्रम मांगती है, इसलिए इसमें कामयाबी हासिल करने के लिए मौज-मस्ती और पढ़ाई के बीच एक संजीदा संतुलन होना जरूरी है. अक्षत का कहना है कि अपने जज्बे के कायम रखें खुद पर भरोसा रखें और पूरी लगन से परीक्षा की तैयारी करें तो सफलता आपको जरूर मिलेगी.



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डॉक्टर ने UPSC प्रीलिम्स के बाद हटा दी थीं किताबें, फिर ऐसे बनीं IAS

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जीवन में कुछ करना चाहते हैं तो उसके लिए जरूरी है लगन. आज हम आपको निधि पटेल के बारे में बताने जा रहे हैं जो पेशे से डॉक्टर हैं. उन्होंने 2018 में यूपीएससी  पास की थी. सबसे खास बात ये है उन्होंने इस परीक्षा की तैयारी 9 महीने में की.

जैसा  कि हम बता चुके हैं, निधि महिला और स्त्री रोग विशेषज्ञ थीं और लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज में बतौर सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर कार्यरत थीं. वह अपने फील्ड में अच्छा काम कर रही थीं, जिसके बाद उन्हें महसूस हुआ कि यूपीएससी की परीक्षा देनी चाहिए. फिर उन्होंने परीक्षा की तैयारी साल 2016 में शुरू कर दी थी.  बता दें, परीक्षा में उन्होंने 364वीं रैंक हासिल की थी.

एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया "मैंने यूपीएससी परीक्षा देने के बारे में कभी नहीं सोचा था. लेकिन ये तय था अगर मैं यूपीएससी  परीक्षा देती हूं तो इस परीक्षा को एक ही साल में पास करना होगा, क्योंकि मेडिकल फील्ड से हटकर एक डॉक्टर होने के नाते ज्यादा समय देना मुमकिन नहीं था. ऐसे में परीक्षा की तैयारी इस माइंडसेट से की थी कि ये आखिरी प्रयास है."

निधि ने बताया - "एक डॉक्टर के नाते आप इतना कुछ नहीं कर पाते. बस अस्पताल तक ही सीमित रहते हैं, इस वजह से मैंने यूपीएससी परीक्षा देने का फैसला किया  था."



मैंने यूपीएससी परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी थी, लेकिन उस समय मुझे इस परीक्षा का बैकग्राउंड नहीं मालूम था.  ऐसे में मैंने अपने एक सीनियर को कॉल किया जिन्होंने साल 2015 में यूपीएससी परीक्षा पास की थी. "बता दें, दोस्त की मदद से डॉ निधि ने अपनी तैयारी शुरू कर दी, और उन्होंने सिर्फ 9 महीने की तैयारी के साथ साल 2018 में 364वीं रैंक हासिल की थी.


दोस्त ने उन्हें बताया कि किस किताब से और कैसे तैयारी करनी है. डॉ निधि ने बताया कि जो उम्मीदवार यूपीएससी की तैयारी पहली बार कर रहे हैं, वह पहले इस परीक्षा के लिए अच्छे से रिसर्च कर लें उसके बाद ही आगे ही प्रक्रिया शुरू करें.


इस परीक्षा के लिए सबसे जरूरी है बेसिक को क्लियर करना, साथ ही न्यूज से खुद को अपडेट रखना भी जरूरी है. प्रीलिम्स के  लिए ज्यादा समय देने की जरूरत नहीं है. कम समय में अच्छी तैयारी करें. इसी के साथ मेंस परीक्षा की तैयारी साथ में करते रहे, वह महत्वपूर्ण परीक्षा है.


निधि ने बताया प्रीलिम्स के लिए ज्यादा टेंशन न लें, अगर आपका बेसिक क्लियर है तो वह आसानी से हो जाता है.  मेंस परीक्षा के लिए 2 या ढाई महीने मिलते हैं. ऐसे में इस परीक्षा की तैयारी पहले से ही करनी है.


प्रीलिम्स परीक्षा होने के बाद निधि ने अपने कमरे से किताबों की संख्या कम कर दी थी. क्योंकि कमरे में किताबें रखी होने से  सब कुछ पढ़ने का मन करता था. ऐसे में उन्होंने वही किताबें कमरे में रखी जो मेंस परीक्षा की तैयारी के लिए पढ़ी जानी थी. डॉ निधि के अनुसार इस परीक्षा को क्रैक करने का बेहद जरूरी मूलमंत्र है टाइम मैनेजमेंट को समझना.


निधि ने बताया यूपीएससी परीक्षा पास करने लिए जरूरी है कि परीक्षा की तैयारी के दौरान आपने कितनी  चालाकी दिखाई है, साथ ही तैयारी के दौरान अपने आस- पास पॉजिटिव लोगों को रखें.
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जूते की दुकान में बैठता था बेटा, पिता ने कहा- कलेक्टर बनो, ऐसे बन गया IAS

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जूते की दुकान में बैठकर पढ़ाई करने वाले इस लड़के की कहानी हमें सिखाती है कि अगर इंसान चाह ले तो कुछ भी कर सकता है. ये हैं साल 2018 के टॉपर शुभम गुप्ता जिन्हें आईएएस के बारे में पता तक नहीं था, लेकिन एक दिन पिता ने कहा कि बेटा कलेक्टर बन जाओ और उन्होंने ठान लिया कि ये ही करके दिखाना है. तमाम मुसीबतों के बावजूद शुभम कलेक्टर बन गए. जानें- क्या थी उनकी स्ट्रेटजी, कैसे की तैयारी, क्या है सफलता का मूलमंत्र.


शुभम गुप्ता एक वीडियो इंटरव्यू में बताते हैं कि मैं जयपुर के एक मिडिल क्लास परिवार से हूं. पिता का छोटा-सा कारोबार था, जिसके सिलसिले में वो अफसरों से मिलते थे. मैं भी पिता की दुकान में बैठता था, पापा ने जब मुझसे कलेक्टर बनने के लिए कहा, उसी दिन से मेरी यूपीएससी की जर्नी शुरू हो गई.


वो बताते हैं कि बचपन में उनके घर की आर्थ‍िक स्थि‍ति इस हद तक कमजोर हुई कि पिता को जयपुर छोड़कर महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव जाना पड़ा. वहां पिता ने जूते की छोटी दुकान खोली. दसवीं में और चुनौती का सामना करन पड़ा क्योंकि हमारे गांव के आसपास किसी स्कूल में हिंदी मीडियम या अंग्रेजी नहीं थी, वहां मराठी में पढ़ना था.


शुभम मराठी में नही पढ़ सकते थे तो गांव के पास गुजरात के एक इलाके में स्कूल में उनका और उनकी बहन का एडमिशन कराना पड़ा. स्कूल घर से 80 किमी दूर था तो वो सुबह छह बजे ट्रेन पकड़ते थे और शाम तीन बजे घर पहुंच पाते थे.


उसी दौरान उनके पिता ने तय किया था कि वो कारोबार को और बढ़ाएंगे क्योंकि घर का खर्च एक दुकान से निकल नहीं पा रहा था. इसलिए उन्होंने उसी इलाके में जूते की दुकान खोली जहां शुभम का स्कूल पड़ता था. शुभम उसी दुकान में बैठने लगे. वो काम संभालने के साथ-साथ पढ़ाई भी जारी रखते थे.


वहां उन्होंने मन लगाकर पढ़ाई की जिससे उनका दसवीं में 10 सीजीपीए आया जो जिले में सबसे ज्यादा था. शुभम कहते हैं कि नंबर अच्छे थे तो लोगों को लगता था कि उन्हें आगे साइंस ही लेना चाहिए था. लेकिन उन्हें लगता था कि कॉमर्स में उनकी ज्यादा रुचि है. इसलिए उन्होंने कॉमर्स ही लिया.


शुभम का कहना है कि तैयारी कर रहे लोगों को एक बात ध्यान रखनी चाहिए कि जो आपने लक्ष्य बनाया है उसकाे पाने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि आप अपनी क्षमता के हिसाब से विषय चुनें. लोग आपको सलाह देंगे लेकिन आप ये जरूर समझिए कि कौन सा विषय आपके लिए ज्यादा अच्छा रहेगा.


12वीं की पढ़ाई करके शुभम ने दिल्ली विश्वविद्यालय में बीकॉम में दाखिला लिया. यहां से एमकॉम करने के बाद उनका यूपीएससी का सफर 2015 में शुरू हुआ. पढ़ाई के साथ तैयारी करके उन्होंने पहली बार प्रीलिम्स दिया तो वो फेल हो गए.


शुभम मानते हैं कि इस फेलियर के पीछे का कारण मेरी सीरियसनेस (गंभीरता) में कमी और खराब टाइम मैनेजमेंट था. इसके लिए उन्होंने सबसे पहले अपने पढ़ने का तरीका पूरी तरह बदला. हर विषय को गंभीरता से समझना शुरू किया और साथ में टाइम मैनेजमेंट भी सुधारा.


इसके लिए उन्होंने पढ़ने का तरीका कुछ इस तरह बनाया जैसे वो अगर सरकार की किसी पॉलिसी के बारे में पढ़ते तो उसके सभी पहलू समझते. मसलन कोई पॉलिसी किसलिए बनी, उसका फायदा किसे और कितना मिलेगा, सरकार की इसके पीछे क्या मंशा रही. इसका विरोध हो रहा है तो क्यों हो रहा है, इन तमाम बिंदुओं को समझा.

इसके बाद साल 2016 में उन्हें ऑल इंडिया 366 रैंक हासिल हुई लेकिन वो रुके नहीं. उनकी नियुक्त‍ि सरकारी नौकरी में हुई, जिसकी तैयारी के दौरान भी वो समय निकालकर यूपीएससी की तैयारी में लगे रहे. आखिरकार 2018 में उन्होंने यूपीएससी की ऑल इंडिया छठी रैंक हासिल कर ली.

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आश‍िमा मित्तल 3 प्रीलिम्स, 3 मेन्स, 3 इंटरव्यू, ऐसे इंजीनियर से IAS टॉपर बनी ये लड़की

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राजस्थान के जयपुर की रहने वाली आश‍िमा मित्तल ने UPSC परीक्षा 2018 में 12वीं रैंक हासिल की. आईआईटी मुंबई की टॉपर और गोल्ड मेडलिस्ट आश‍िमा ने लाखों की नौकरी छोड़कर UPSC की तैयारी शुरू की थी. जानिए किस तरह उन्होंने तीन बार प्री लिम्स, मेन्स और इंटरव्यू के बाद अपना मुकाम पाया.


बचपन से पढ़ाई में अव्वल रहीं आशि‍मा ने आईआईटी बॉम्बे से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की. एक वीडियो इंटरव्यू में बताया कि उन्होंने आईआईटी में चार साल पढ़ाई की और कॉलेज लाइफ में बहुत कुछ सीखा. उन्हें आईआईटी बॉम्बे में गोल्ड मेडल से नवाजा गया.



वो बताती हैं कि इसके बाद मैंने प्राइवेट नौकरी करने की सोची ताकि आगे कभी अफसोस न हो कि मैंने ये काम नहीं किया. लेकिन इस नौकरी के दौरान मन में कहीं आईएएस बनने का सपना था. मेरे घरवाले भी मेरे लिए यही सपना देख रहे थे.



जब पहली बार मिली हार


आशिमा ने बताया कि उस जॉब में मुझे लेगा कि इसके लिए मैं नहीं बनी हूं. मेरा दिल वहां खुश नहीं था. बस तभी नौकरी छोड़कर यूपीएससी की तैयारी में जुट गई. आत्मविश्वास मुझमें कूट-कूटकर भरा था. 2015 में पहला अटेंप्ट दिया, सब सोचते थे कि क्लीयर कर लेंगे क्योंकि प्री लिम्स और मेन्स के बाद इंटरव्यू की कॉल आ गई थी, लेकिन अफसोस इसमें फाइनल लिस्ट में 10 नंबर से रह गई थी.


फेलियर से हुई डिप्रेस

आश‍िमा जब पहली बार में इंटरव्यू में रह गईं तो इसने उन्हें बहुत डिप्रेस कर दिया. वो बताती हैं कि तब मैं दो से तीन दिन तक रोती रही थी. मेरी दादी की तबीयत ठीक नहीं थी, एक माह के बाद उनका देहांत हो गया. मेरे पेरेंट्स भी परेशान थे. ये कठिनाई भरा समय था.


'एक घटना ने बदलकर रख दिया'


वो कहती हैं कि हमारी लाइफ में हम हमेशा जीतते नहीं है. हार से हम दो साल खो देते हैं, बहुत नुकसान होता है लेकिन इससे उबर पाना बड़ी कला होती है. वो बताती हैं कि किस तरह वो इस गम से उबरकर दोबारा तैयारी में जुट पाईं.



आशिमा बताती हैं कि वो पहले साल दिल्ली से तैयारी कर रही थी. वो यहां से एंथ्रोपॉलाजी की पढ़ाई कर रही थीं क्योंकि ये उनका ऑप्शनल विषय था. इसमें मास्टर्स डिग्री करने  लगी. वो बताती हैं कि इसके एक प्रोजेक्ट के दौरान वो दिल्ली के स्लम कठपुतली कॉलाेनी में विजिट कर रही थीं. जहां देखा कि एक छोटे से घर में एक महिला थी और भीतर करीब तीन साल का बच्चा लेटा था जो कि ठीक से हिल-डुल भी नहीं पा रहा था. मैंने उसकी मां से पूछा कि बच्चे को क्या हुआ, तो उसका जवाब था 'पता नहीं.'



वो महिला अपने बच्चे को लेकर कभी अस्पताल तक नहीं गई थी, उसे बच्चे की बीमारी के बारे में कुछ भी पता नहीं था. मेरे लिए ये चौंकाने वाली बात थी. मैं एक अच्छे परिवार से आती हूं जहां मां प्रोफेसर और पिता बिजनेसमैन हैं, मेरे लिए ये बड़ी बात थी कि एक मां को पता ही नहीं वो अस्पताल तक नहीं जा सकी. मैंने अपनी मां से बात की, उन्होंने कहा कि बेटा अगर भगवान ने तुम्हें उनके घर तक भेजा है तो जरूर तुम्हें किसी कारण से भेजा होगा. मैंने उस बच्ची को डॉक्टर तक पहुंचाया और अपने साथियों के साथ मिलकर उसका इलाज सुनिश्चित कराया. इस घटना के बाद मैं दोबारा तैयारी करने लगी, मुझे पता चल गया था कि मदद के लिए आपको उस काबिल बनना होता है.

'दूसरी बार प्रीलिम्स बहुत अच्छा गया'


वो बताती हैं कि दूसरी बार में प्रीलिम्स में मुझे 140 नंबर मिले. इसके बाद मेन्स में मैंने एंथ्रोपॉलोजी पर ज्यादा ध्यान दिया. उस वक्त निबंध में ज्यादा समय नहीं दे पाई. इंटरव्यू दिया और इस बार मेरा आईआरएस में हो गया. जिसकी ट्रेनिंग चल रही थी.  लेकिन दूसरी बार की गलतियों को सुधारते हुए मैंने तीसरी बार फिर से एग्जाम दिया तो तीसरी बार में मुझे 12वीं रैंक मिली. उस दिन मुझे पापा ने वो पेपर दिखाया जो उन्होंने कई साल पहले लिखा था उसमें लिखा था कि मेरी बेटी टॉप 20 में सेलेक्ट होगी.
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बचपन में चूड़ियां बेचा करते थे रमेश, फिर इस तरह बन गए IAS अधिकारी

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सपने देखना सबके बस में है पर उन्हें पूरी करना हर किसी के बस की बात नहीं। आज हम जिस शख्स के बारे में बता रहे हैं उनका नाम है रमेश घोलप। इनका जन्म महाराष्ट्र के सोलापुर में हुआ है। जीने का सही ढंग कोई इनसे सीखे। एक ऐसा भी समय था जब इन्होंने अपनी मां के साथ चूड़ियां बेचकर अपना पेट पाला और आज वो एक आईएएस अधिकारी है। गरीबी के दिन काटने वाले रमेश ने अपनी जिंदगी से कभी हार नहीं मानी और आज युवाओं के लिए वो मिसाल बन गए हैं। बता दें, वर्तमान में रमेश घोलप को उपायुक्त के पद पर झारखंड में नियुक्त किया गया है। आखिर कैसे की उन्होंने तैयारी, पढ़ते हैं आगे..



रमेश के पिताजी अपनी पंक्चर की दुकान से 4 लोगों के परिवार का जैसे-तैसे गुजर-बसर करते थे। लेकिन ज्यादा शराब पीना उनके लिए घातक साबित हुआ और उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा।

परिवार का गुजर-बसर करने के लिए मां ने आसपास के गांवों में चूड़ियां बेचना शुरू किया।

रमेश और उनके भाई इस काम में मां की मदद करते थे। लेकिन किस्मत को शायद उनकी और परीक्षा लेनी थी, इसी दौरान रमेश का बाएं पैर में पोलियो हो गया।

रमेश के गांव में पढ़ाई के लिए केवल एक ही प्राइमरी स्कूल था। रमेश को आगे की पढ़ाई करने के लिए उनके चाचा के पास बरसी भेज दिया गया।


रमेश को पता था कि केवल पढ़ाई ही उनके परिवार की गरीबी को दूर कर सकती है। इसलिए वो जी-जान से पढ़ाई में जुट गए।

वो पढ़ाई में काफी अच्छे थे और इसलिए अपने शिक्षकों के दिल में भी उन्होंने जगह बना ली। जब पिता की मौत हुई तब वो 12वीं की परीक्षा की तैयारी में जुटे हुए थे।

गरीबी के ऐसे दिन थे कि उनके पास अपने पिता की अंतिम यात्रा में शामिल होने के लिए 2 रुपए भी नहीं थे।


किसी तरह पड़ोसियों की मदद से वो पिता की अंतिम यात्रा में शामिल हो पाए।

उनपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था लेकिन फिर भी उन्होंने हार नही मानी और 88 प्रतिशत अंक के साथ 12वीं की परीक्षा पास की।

12वीं के बाद उन्होंने शिक्षा में डिप्लोमा किया और 2009 में शिक्षक बन गए। लेकिन रमेश यहीं रुकने वाले नहीं थे।



उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और आईएएस की परीक्षा में जी-जान से जुट गए। कड़ी मेहनत के बाद आखिरकार उन्होंने 2012 में सिविल सेवा परीक्षा में 287वीं रैंक हासिल की।
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सैय्यद रियाज अहमद 12वीं में फेल बना IAS

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महाराष्ट्र के नासिक जिले के रहने वाले सैय्यद रियाज अहमद 12वीं में एक विषय से फेल हो गए थे. फिर उन्होंने अपनी पढ़ाई का तरीका इस तरह बदला कि हर क्लास हमेशा अव्वल आते रहे. उनके कदम आगे बढ़े तो फिर पहले MPSC में सेकेंड रैंक पाई और रेंज फारेस्ट अफसर (RFO) बने, फिर इस जॉब में रहते यूपीएससी 2018 निकाला. रियाज अहमद के प्रीलिम्स की तैयारी के टिप्स

रेयाज अहमद कहते हैं कि अब यूपीएससी प्रीलिम्स के एग्जाम के महज कुछ दिन बचे हैं. ऐसे में मैं उन लोगों के बारे में समझ सकता हूं जो पहली बार प्री लिम्स में बैठ रहे हैं. मैं भी पहली बार प्री लिम्स के वक्त बहुत चिंता में था कि आख‍िर क्या पढ़ूं और क्या छोड़ दूं. मैं ऐसे एस्प‍िरेंट्स के साथ अपनी ट्रिक शेयर करना चाहता हूं, जिसे वो भी अपना सकते हैं.


रिवीजन, रिवीजन सिर्फ रिवीजन


UPSC प्रीलिम्स के ताले की एक ही चाभी है, वो है रिवीजन. अब बस उतना ही वक्त है जिसमें आप पहले का पढ़ा सारा कोर्स रिवाइज कर सकें. इसके अलावा आप दूसरी चीज जो कर सकते हैं वो है ग्रुप डिस्कशन. ये डिस्कशन यूपीएससी के सवालों पर ही होना चाहिए.


डेली दें एक मॉक टेस्ट
प्रीलिम्स की लास्ट मोमेंट तैयारी के लिए हर दिन एक मॉक टेस्ट देना बहुत जरूरी है. इस टेस्ट को देकर आप इसे आंसर शीट से मिलाएं. जहां चूक हो रही है, उसे सुधारें लेकिन खुद को डिमोटिवेट न करें. इसके अलावा मैप रीडिंग भी जरूरी है.


रियाज अहमद कहते हैं कि तैया‍री के इन आख‍िरी दिनों में नेशनल पार्क और वाइल्ड लाइफ सेंक्चुरी जैसे विषयों को एक बार फिर से दोहरा लें. ध्यान रहे कि इस दौरान आप सभी विषयों को स्लॉट में बांटकर पढ़ें. टाइम मैनेजमेंट भी प्रीलिम्स की तैयारी के लिए बहुत जरूरी है.

प्रीलिम्स की तैयारी के दौरान आप तमाम तरह की रिपोर्ट जैसे ईज ऑफ डूइंग बिजनेस इंडेक्स ऑफ नेशनल एंड इंटरनेशनल बॉडीज आदि पढ़ लें. इसके अलावा सरकारी रिपोर्ट जरूर दोहरा लें.


कुछ भी नया न पढ़ें


यही वो सही वक्त है जब आप न्यूजपेपर पढ़ना बंद कर सकते हैं. इसके अलावा कुछ भी नया पढ़ने से बचें. न्यूजपेपर पढ़ने की बजाय जो आपने नोट्स न्यूजपेपर से बनाए हैं उसे दोहरा लें.

साल 2013 में सैयद रियाज ने पूना में रहकर यूपीएससी की तैयारी की. रेयाज कहते हैं कि मुझे कुछ पता नहीं था, न टेस्ट सीरीज के बारे में पता था, न तैयारी के अलग अलग तरीकों के बारे में ज्ञान था. फिर साल 2014 में पहला अटेंप्ट किया और प्रीलिम्स से ही फेल हो गया.


तब सोचा कि कोई बात नहीं, और साल 2015 में जामिया की आईएएस एकेडमी में एडमिशन लिया. फिर 2015 में प्रीलिम्स दिया. उस साल की परीक्षा में  93 सवाल किए, नेगेटिव के कारण एक मार्क से प्रीलिम्स क्वालीफाई नहीं हुआ तो लोगों ने सवाल उठाना शुरू कर दिया. दोस्तों ने कहा कि तैयारी ठीक नहीं है. तब मैंने समझा कि गलत स्ट्रेटजी के कारण ऐसा हुआ.

बनाई खुद की 123 स्ट्रेटजी

रियाज ने तब प्रीलिम्स की खुद की स्ट्रेटजी बनाई और उसे 123 स्ट्रेटजी नाम दिया. वो बताते हैं कि 1 यानी जिन सवालों को लेकर मैं कान्फीडेंट हूं, उन्हे पहले करना था. फिर 2 में वे सवाल जिनमें मैं कन्फ्यूज्ड हूं उसे पहली बार में छोड़ देता था. फिर 3 जो बिल्कुल नहीं आते थे, उन्हें पूरी तरह छोड़ देता था. 1 करने के बाद 2 कैटेगरी पर आकर हल करता था.
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