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अपराजिता सिनसिनवार IAS एक औसत लड़की, डॉक्टर फिर IAS बनी

 



अपराजिता सिनसिनवार साल 2018 की 82वीं रैंक की टॉपर हैं। 2019 में आए UPSC के रिजल्ट में अपराजिता ने 759 कैंडिडेट्स में से 82वां रैंक हासिल किया है। हरियाणा के रोहतक की रहने वाली अपराजिता कभी स्कूल में एवरेज स्टूडेंट थीं। लेकिन अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और प्लानिंग से की तैयारी ने उन्हें कहां से कहां पहुंचा दिया, उनकी तैयारी के तरीके और मेहनत के जज्बे को देखकर आप हैरान रह जाएंगे।


25 साल की अपराजिता ने इतनी कम उम्र में इतना लंबा सफर तय किया है। उन्होंने सबसे पहले पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (PGIMS) से डॉक्टरी की परीक्षा दी। फिर MBBS डॉक्टर बनने के बाद उन्होंने साल 2017 में यूपीएससी की परीक्षा दी। पहली बार में उन्हें सफलता नहीं मिली, लेकिन उन्होंने बिना हौसला डिगाये ये परीक्षा दूसरी बार फिर से दी और सफल हो गईं।



दिल्ली नॉलेज ट्रैक को दिए इंटरव्यू में अपराजिता ने कहा कि वो शुरूआत से बहुत ब्रिलिएंट स्टूडेंट नहीं थीं। स्कूल में वो अपनी क्लास में एक एवरेज स्टूडेंट भर थीं। यही नहीं उनकी हैंडराइटिंग भी काफी खराब थी। इसकी वजह से उन्हें बहुत कुछ सुनना पड़ता था। टीचर्स उनकी कॉपी पर उन्हें बहुत रिमार्क्स देते थे। एक बार तो तो टीचर ने ये कहकर कि उन्हें अपराजिता का लेखन समझ में नहीं आया, नंबर देने से भी मना कर दिया।



यहीं से शुरू हुआ मोड़


बचपन में उसी दौर से अपराजिता का  मोड़ शुरू हुआ उन्होंने उस दौरान प्रण किया कि अब हरहाल में वो अपनी हैंडराइटिंग सुधारकर मानेंगी। दिनरात की कोशिश के बाद उनकी हैंडराइटिंग सुधर गई और इतना ही नहीं उन्हें बेस्ट राइटिंग का खिताब भी मिला। अपराजिता की निजी जिंदगी की बात करें तो उन्होंने अपने ननिहाल में रहकर पढ़ाई की है। किन्हीं कारणों से वो एक महीने की उम्र से ही ननिहाल में रहती थीं। अपराजिता ने बताया कि जब वो बहुत छोटी थीं तभी उन्होंने आईएएस बनने की ठान ली थी। वो बताती हैं कि एक बार वो नाना के साथ बाहर जा रही थी तो रास्ते में किसी IAS अफसर की गाड़ी देखी। उन्होंने नाना से पूछा तो उन्होंने कहा कि ये अफसर लोगों की समस्याएं सुनते हैं। तभी से उन्होंने आईएएस बनने की ठान ली.



अपराजिता आईएएस की तैयारी कर रहे लोगों के लिए एक बड़ी नजीर हैं। उनका मानना है कि इंसान अगर खुद से कमिटमेंट कर ले तो कोई भी उसके हौसले को डिगा नहीं सकता। उन्होंने इसी हौसले के साथ डॉक्टर रहते हुए ड्यूटी और यूपीएससी की तैयारी एक साथ की। तैयारी के दौरान उन्हें चिकनगुनिया हो गया, वो ठीक हुआ तो फ्रैक्चर हो गया लेकिन, तब भी वो बिना रुके पढ़ती रहीं और परीक्षा भी दी।



यही नहीं बचपन में भी अपराजिता शारीरिक रूप से कभी बहुत मजबूत नहीं रहीं। शरीर से कमजोर होने के बावजूद वो पूरी लगन से काम करके जीतती रहीं। अपराजिता कहती हैं कि मेरे नाम के पीछे भी यही सच्चाई है। मेरी हार न मानने के कारण ही मेरे नाना ने मेरा नाम अपराजिता रखा था और वो हमेशा मुझे याद भी दिलाते रहे। यूपीएससी की तैयारी के दौरान भी मैंने ये ध्यान रखा कि किसी भी तरह मुझे हार नहीं माननी है।